POETRY SKY
Friday, March 9, 2012
लुक्का शुप्पी
लुक्का शुप्पी खेले, मेरो नन्नो लाल
कभी उधम मचाये , कभी खूब जोर लगाये,
पर जो मैंने देखूं तो चुप हो जाय.
कभी पानी के बुलबुले जैसा, तो कभी तितलियों
एसो हैं मेरो नटखट लाल.
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